मनुष्य को कार्य कैसे करना चाहिए
भोग के किसी भी पदार्थ को पाने के लिए ईर्ष्या या द्वेष नहीं करनी चाहिए, यह ईर्ष्या द्वेष ही अनर्थो का मूल है, और साथ ही अत्यंत दुर्लभ नियत्रि है,
पुनः मोह या भ्र्म में हम सदा एक वास्तु को दूसरी वास्तु समझ बैठते है, और उसी गलत भावना से कार्य करते है।