तदुपरांत अभ्यास मन सदा परमात्मा की और जावे अन्य किसी वास्तु को हमारे मन में प्रविष्ट होने का अधिकार नहीं है,
मन निरंतर ईश्वर का ही विचार करे, यह यद्यपि कठिन है परन्तु सतत अभ्यास से ऐसा हो सकता है,
आज जो कुछ हम है वो हमारे पूर्व अभ्यास का परिणाम है, और अब जैसा अभ्यास करेंगे वैसे ही हम भविष्य में बनेंगे।