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मनुष्य कहा स्वतंत्र है

मनुष्य कैसे इन्द्रियों के गुलाम है ? और वो स्वयं को कैसे स्वतंत्र करेगा ,,,,,

क्या है हम एक शब्द या जबान के गुलाम, और यहाँ तक की रोटी के एक टुकड़े तक के गुलाम बन गए है, "यह कितनी लज्जा की बात है"
 और फिर भी हम अपने आप को आत्मा कह कर पुकारते है, परन्तु इसे आत्मा कहलाने का कोई लाभ नहीं ' हम इस संसार के गुलाम है । 
अगर हमें इस गुलामी से निकलना है तो हमें अपने मन में किसी भौतिक या मानसिक सुख भोग का चिंतन में नहीं लगाना चाहिए , 
"" केवल परमात्मा की ओर अपने मन को लगाना चाहिए।

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मनुष्य को कार्य कैसे करना चाहिए

जैसे जीने के लिए जल, भोजन और वायु आवश्यक है वैसे ही जीवन में अभ्यास आवश्यक है .

तदुपरांत अभ्यास मन सदा परमात्मा की और जावे अन्य किसी वास्तु को हमारे मन में प्रविष्ट होने का अधिकार नहीं है, 
मन निरंतर ईश्वर का ही विचार करे, यह यद्यपि कठिन है परन्तु सतत अभ्यास से ऐसा हो सकता है,
आज जो कुछ हम है वो हमारे पूर्व अभ्यास का परिणाम है, और अब जैसा अभ्यास करेंगे वैसे ही हम भविष्य में बनेंगे।  

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मनुष्य को कार्य कैसे करना चाहिए

भौतिक जीवन भोग से परे कैसे हो

भोग के किसी भी पदार्थ को पाने के लिए ईर्ष्या या द्वेष नहीं करनी चाहिए, यह ईर्ष्या द्वेष ही अनर्थो का मूल है, और साथ ही अत्यंत दुर्लभ नियत्रि है,
पुनः मोह या भ्र्म में हम सदा एक वास्तु को दूसरी वास्तु समझ बैठते है, और उसी गलत भावना से कार्य करते है। 

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शायरी

शाम

शाम के वक्त न आये  मिलने मुझसे कोई,
शाम के वक्त मै खुद से बिछड़ जाता हु । 
 

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